- सचिन श्रीवास्तव
मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने नागपुर में हुई हिंसा को 'सुनियोजित हमला' बताया, लेकिन वे इस सवाल पर चुप्पी साध गये कि आखिर यह योजना बनाई किसने? भाजपा नेताओं और संघ से जुड़े संगठनों के बयानों को देखें तो यह साफ़ होता है कि धार्मिक कट्टरता को बढ़ाने के लिए एक सोची-समझी साजिश रची जा रही है।
ऐतिहासिक रूप से भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलनों का केंद्र रहा नागपुर, आज भाजपा और आरएसएस की विभाजनकारी राजनीति का नया शिकार बन चुका है। हाल ही में हुई हिंसा, जिसमें कई पुलिसकर्मी और नागरिक घायल हुए, यह बताने के लिए काफी है कि सत्ता की प्रयोगशाला में सांप्रदायिकता का एक और नया अध्याय जोड़ा जा रहा है। सवाल यह है कि क्या भाजपा और संघ परिवार को फिर से देश को दंगों की आग में झोंकना है, या यह सिर्फ एक चुनावी रणनीति है ताकि असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाया जा सके?
मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने नागपुर में हुई हिंसा को 'सुनियोजित हमला' बताया, लेकिन वे इस सवाल पर चुप्पी साध गये कि आखिर यह योजना बनाई किसने? भाजपा नेताओं और संघ से जुड़े संगठनों के बयानों को देखें तो यह साफ़ होता है कि धार्मिक कट्टरता को बढ़ाने के लिए एक सोची-समझी साजिश रची जा रही है।
फिल्म 'छावा' को बहाना बनाकर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं, वह कोई अचानक भड़का आक्रोश नहीं था, बल्कि यह हिंदुत्ववादी एजेंडे का एक हिस्सा था। संघ परिवार हमेशा से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर भारतीय समाज को धार्मिक आधार पर विभाजित करता आया है। यह हिंसा उसी रणनीति का नतीजा थी, जिसमें इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया और जनता को सांप्रदायिक आधार पर भड़काने का प्रयास किया गया।
संघ की राजनीति हमेशा से तीन मुख्य लक्ष्यों पर केंद्रित रही है। पहला, एक संविधान की धर्मनिरपेक्षता को कमज़ोर करना, दूसरा व्यक्ति स्वतंत्रता पर हमला और तीसरा लक्ष्य है भय का वातावरण बनाना।
संघ को भारत का धर्मनिरपेक्ष संविधान कभी स्वीकार नहीं था। गोलवलकर से लेकर मोहन भागवत तक, संघ के प्रमुख नेताओं ने हमेशा यह कहा है कि भारत में हिंदू राष्ट्र की स्थापना होनी चाहिए। यह विचारधारा सीधे भारतीय संविधान के खिलाफ जाती है, जो समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की बात करता है।
दूसरे, किसी भी लोकतांत्रिक समाज में व्यक्ति को अपनी धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं के अनुसार जीने की आज़ादी होती है। लेकिन संघ का पूरा ढांचा इस विचारधारा के खिलाफ खड़ा है। महिलाओं के अधिकारों से लेकर अल्पसंख्यकों के जीवन तक, हर जगह यह संगठन लोगों की व्यक्तिगत आज़ादी को खत्म करने के लिए प्रयासरत है।
तीसरा, संघ और भाजपा की राजनीति भय पर टिकी हुई है। एक समुदाय को दूसरे से डराने की रणनीति को यह संगठन बड़ी बारीकी से अपनाता है। कभी लव जिहाद के नाम पर, कभी मॉब लिंचिंग के जरिये, कभी फिल्म या किताबों के बहाने, संघ का एक ही उद्देश्य होता है - अल्पसंख्यकों को हाशिए पर धकेलना और बहुसंख्यक समुदाय को असुरक्षा का झूठा अहसास दिलाकर उग्र हिंदुत्व की राजनीति को मजबूत करना।
इतिहास को देखें, तो भाजपा और संघ की इस राजनीति के कई उदाहरण मिलते हैं। चाहे वह 1992 का बाबरी विध्वंस हो, 2002 का गुजरात दंगा हो, 2013 का मुजफ्फरनगर दंगा हो या नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन के दौरान दिल्ली हिंसा (2020), जिसमें एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन को सांप्रदायिक हिंसा में बदल दिया गया। यह सभी घटनाएं बताती हैं कि भाजपा और संघ की राजनीति सिर्फ और सिर्फ विभाजन पर आधारित है।
नागपुर में हुई इस हिंसा के पीछे भाजपा की असल मंशा आगामी चुनावों के लिए धु्रवीकरण है। जिस तरह देश में आर्थिक संकट और बेरोजगारी बढ़ रही है, भाजपा के पास जनता को देने के लिए कुछ नहीं है। ऐसे में विभाजनकारी राजनीति ही उसका आखिरी हथियार है।
साथ ही वह संविधान को कमजोर करने की योजना के लिए जमीन तैयार कर रही है। हाल ही में बार-बार संविधान बदलने की बात की जा रही है। फड़नवीस सरकार और संघ की विचारधारा का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत धीरे-धीरे हिंदू राष्ट्र की ओर बढ़े। इसके अलावा ध्यान भटकाने की अपनी परखी हुई रणनीति के तहत भाजपा ने अडानी, बेरोजगारी, महंगाई, किसान आंदोलन, शिक्षा नीति जैसे मुद्दों पर बहस न हो, इसके लिए धार्मिक उन्माद का सहारा लिया है।
संविधान कहता है कि भारत सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों वाला देश है, लेकिन भाजपा और संघ की राजनीति एक अलग ही तस्वीर पेश करती है। लव जिहाद, गौ हत्या, धर्मांतरण जैसे मुद्दों को उठाकर अल्पसंख्यकों के खिलाफ कानूनी हथियार तैयार किए जा रहे हैं। बुलडोजर राजनीति के जरिये मुसलमानों और दलितों के घरों को ध्वस्त किया जा रहा है। मदरसों, हिजाब और हलाल पर हमले करके मुसलमानों की सांस्कृतिक पहचान को खत्म करने की कोशिश हो रही है। सोशल मीडिया पर हेट स्पीच और गोडसे की महिमा गाने वाले ट्रेंड को बढ़ावा दिया जा रहा है।
भाजपा और संघ यह अच्छी तरह जानते हैं कि अगर जनता असली मुद्दों पर सवाल पूछने लगी, तो उनकी सत्ता खतरे में पड़ जायेगी। इसलिए बार-बार देश को सांप्रदायिक हिंसा की ओर धकेलने की कोशिश की जाती है। कभी इतिहास को विकृत करके, कभी फिल्मों और किताबों के माध्यम से, कभी हिंदू-मुस्लिम विवादों को बढ़ावा देकर, कभी सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाकर, तो कभी पुलिस और प्रशासन को सांप्रदायिक एजेंडे में ढालकर।
और अंत में
आज जब भाजपा-संघ का एजेंडा संविधान, धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे के खिलाफ खुलकर सामने आ रहा है, तब इसकी वैचारिक लड़ाई तेज करने की ज़रूरत है। शिक्षा और मीडिया पर संघ के कब्जे को चुनौती देना आज वक़्त की ज़रूरत है। साथ ही इतिहास और संस्कृति के नाम पर फैलाए जा रहे झूठ का पर्दाफ़ाश करना, अल्पसंख्यकों और कमज़ोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट होना और लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के समर्थन में बड़े सामाजिक आंदोलन खड़े करने की ज़रूरत है।
नागपुर हिंसा और उससे जुड़ी राजनीति यह बताने के लिए काफ़ी है कि भाजपा और संघ का असली उद्देश्य जनता को आपस में लड़वाकर अपनी सत्ता बनाये रखना है। लेकिन सवाल यह है कि क्या देश की अमन पसंद अवाम इसे होने देगी?